बिना शोर-शराबे वाली एक बढ़िया अदालती कहानी, साथ में सधी हुई अदाकारी: 420 IPC Movie

हिंदी सिनेमा में कोर्ट रूम ड्रामा फिल्मों की कमी नहीं है। बीआर चोपड़ा की आइकॉनिक ‘कानून’ से लेकर ‘दामिनी’ और ‘मेरी जंग’ से होते हुए अक्षय कुमार की ‘जॉली एलएलबी’ और ताजातरीन तमिल फिल्म ‘जय भीम’ तक… एक से बढ़कर एक कोर्ट रूम ड्रामा आये हैं। बीच में बहुचर्चित मराठी फिल्म ‘कोर्ट’ का नाम भी कोर्ट रूम ड्रामा फिल्मों की जरूरी लिस्ट में शामिल किया जा सकता है।

ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर भी वेब सीरीज और फिल्मों की सूरत में तमाम लीगल ड्रामा मौजूद हैं। ऐसे में जी5 पर एक और कोर्ट रूम ड्रामा आया है- 420 आईपीसी। कुछ फिल्मों को छोड़ दें तो ज्यादातर कोर्ट रूम ड्रामा भारी-भरकम संवादों, अति-नाटकीयता और अदालतों के अंदर गैरजरूरी हीरोगीरी के मसालों में सने नजर आते हैं, जिनके लिए इन्हें दर्शकों का प्यार और खूब तालियां भी मिलीं।

420 आईपीसी की सबसे अच्छी बात यही है कि यहां जो अदालत या अदालती कार्यवाही नजर आती है, उसमें कहीं भी अतिरंजिता या अतिरेकता नहीं है। फिल्म सादगी से कानूनी दांवपेंचों के चित और पट वाले अंदाज में आगे बढ़ती है और धीरे-धीरे दर्शक को अपने कथ्य से जोड़ती जाती है। एक साधारण-सा दिखने वाला केस क्लाइमैक्स आते-आते बहुत बड़ा हो जाता है और फिल्म एक तार्किक अंत पर खत्म होती है।

कहानी के केंद्र में पांच मुख्य किरदार हैं- बंसी केसवानी (विनय पाठक), बीरबल चौधरी (रोहन विनोद मेहरा), सावक जमशेदजी (रणवीर शौरी), पूजा केसवानी (गुल पनाग) और नीरज सिन्हा (आरिफ जकारिया)। बैंक के कर्ज में डूबा मध्यवर्गीय जीवन शैली जीने वाला बंसी केसवानी चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं, जिसके पास कुछ हाई-प्रोफाइल क्लाइंट्स हैं। इनमें एक एमएमआरडीए का डिप्टी डायरेक्टर संदेश भोसले भी है।

भोसले पर मुंबई के ऐरौली इलाके में 3000 करोड़ की लागत से बन रहे एक ब्रिज निर्माण के प्रोजेक्ट में से 1200 करोड़ रुपये का गबन करने का आरोप लगता है। सीबीआई उसे गिरफ्तार कर लेती है। जांच के क्रम में सीबीआई बंसी केसवानी से भी पूछताछ करती है। घर की तलाशी लेती है। मगर कुछ ना मिलने पर उसे जाने देती है। इस घटना के दो महीने बाद बंसी एक नई मुसीबत में फंस जाता है।